वर्तमान

आधुनिक ओर तकनीक से स्वयं को लैस करने की दौड़ में दौड़ते समाज में प्रतिस्पर्धा हो रही है । आज सीख के रूप में सभी से सुनने को भी मिलता है कॉम्पिटिशन बहुत है कुछ करो जिंदगी बनाओ ।इस कॉम्पिटिशन शब्द ने करोड़ी जिंदगियो को प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ला खड़ा किया है । ओर इस कभी समाप्त ना होने वाली प्रतिस्पर्धा का ही परिणाम हमे सुनाई देता है जवानी चढ़ने से पहले काल का ग्रास बनती जिन्दगीयो की चीख में । जो दौड़ से बाहर हो जाते है इस प्रतिस्पर्धा में उनके लिए परिणाम सिर्फ मौत है यही दिखता ओर होता जा रहा है ।
व्यक्ति, परिवार,समाज,व्यापार,राज,राजनीति सभी जगह प्रतिस्पर्धा है पर स्तरहीन के स्थान पर सकारात्मक व्यक्ति निर्माण की प्रतिस्पर्धा होनी आवश्यक है । केवल पुस्तक ज्ञान के आधार पर दौड़ लगाना प्रासंगिक नही है व्यवहारिक ज्ञान बेहद आवश्यक है और तभी हम मानव जीवन को काल की ओर धकेलती प्रतिस्पर्धा के स्थान पर मानवीय मूल्यों को संरक्षित करती राष्ट्रीय विचार वाले नागरिक का निर्माण करने वाली सुचारू कर सकेंगे

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