केरल में लाल आतंक

                                       केरल में लाल आतंक 

                                                                                  -  अश्वनी कुमार "आज़ाद " 

                                                                           
                                                                  

 कुछ माह पूर्व सहिष्णुता की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन अगर आप  केरल में हिंसा की बात करेंगे तो  इस  पर मानवाधिकारों की दुहाई देने बाले प्रवक्ता लुप्तप्राय हो जायेगे । केरल में लगातार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ,एबीवीपी,भाजपा व् राष्ट्रवादी विचार के संगठनों से जुड़े  कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर  वीभत्स ,अमानवीय तरिके के उनकी हत्या की जा रही है और इस हिंसा को मुख्यमंत्री पी विजयन की माकपा सरकार का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है ।भारत विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र है, जहां सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं।
एक राज्य में जब गुण्डाराज बढ़ जाता है। निर्दोष लोगों की हत्याओं के साथ ही अन्य प्रकार के अपराध बढ़ जाते हैं, तब सामान्य तौर पर माना जाता है कि राज्य सरकार असफल साबित हो रही है। कानून पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहा। किंतु, केरल के संदर्भ में यह सामान्य विचार वास्तविकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। विरोधी विचारधारा के लोगों की हत्याएं तो किसी भी कम्युनिस्ट सरकार की सफलता का पैमाना है। उसी पैमाने पर खरा उतरने का प्रयास केरल की कम्युनिस्ट सरकार कर रही है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन स्वयं भी संघ के कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं। विजयन और कोडियरी बालकृष्णन के नेतृत्व में पोलित ब्यूरों के सदस्यों ने संघ के स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या 28 अप्रैल 1969 को की थी।

जब हम इतिहास की किताब के पन्न पलटेंगे, तब पाएंगे कि रूस में लेनिन और स्टालिन, रूमानिया में चासेस्क्यू, पोलैंड में जारू जेलोस्की, हंगरी में ग्रांज, पूर्वी जर्मनी में होनेकर, चेकोस्लोवाकिया में ह्मूसांक, बुल्गारिया में जिकोव और चीन में माओ-त्से-तुंग ने किस तरह नरसंहार मचाया। इन अधिनायकों ने सैनिक शक्ति, यातना-शिविरों और असंख्य व्यक्तियों को देश-निर्वासन करके भारी आतंक का राज स्थापित किया। माक्र्सवादी रूढि़वादिता ने कंबोडिया में पोल पॉट के द्वारा वहां की संस्कृति के विद्वानों मौत के घाट उतार दिया गया। जंगलों और खेतों में उन्हें मार गिराया गया। लेनिन कहता था कि विरोधियों को सरेआम गोली मार देनी चाहिए। कम्युनिस्ट स्वयं मानते हैं कि उनकी विचारधारा में असहमतियों के सुर स्वीकार्य नहीं हैं। अपने से अलग विचार के लिए कोई स्थान नहीं है। यही सब कम्युनिस्टों ने भारत में किया है, जहाँ-जहाँ उनकी सरकारें रही हैं।

वर्ष 2013-14 में केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगभग 4000 शाखाएं थीं, जो आज की स्थिति में बढ़कर 5500 से अधिक हो गई हैं। केरल का युवा बड़ी संख्या में संघ से जुड़ रहा है। अपनी जमीन खिसकने से कम्युनिस्ट डरे हुए हैं।  स्वतंत्रता के बाद अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी ने संघ पर सबसे पहला बड़ा हमला 1948 में किया था। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी जब स्वयंसेवकों की एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, तब माक्र्सवादी उपद्रवियों ने हमला कर दिया था। इसके बाद 1952 में भी श्रीगुरुजी जब अलप्पुझा में एक बैठक को संबोधित कर रहे थे, तब भी वामपंथी गुंडों ने उनको चोट पहुँचाने के लिए हमला बोला था। वर्ष 1969 में त्रिशूर के श्री केरल वर्मा कॉलेज में स्वामी चिन्मयानंदजी युवाओं के बीच उद्बोधन के लिए आमंत्रित किए गए थे। उनको भाषण देने से रोकने के लिए मार्क्सवादी  बदमाशों ने सुनियोजित हमला बोला था, जिसमें से स्वयंसेवकों ने बड़ी मुश्किल से स्वामीजी को सुरक्षित निकाला था। 1970 में एर्नाकुलम जिले के परूर में माकपा हमलावरों ने संघ के पूर्व प्रचारक वेलियाथनादु चंद्रन की हत्या की। 1973 में त्रिशूर जिले के नलेन्करा में मंडल कार्यवाह शंकरनारायण को मार डाला। 1974 में कोच्चि में संघ के मंडल कार्यवाह सुधींद्रन की हत्या की। 1978 में कन्नूर जिले के तलासेरी में एक शाखा के मुख्य शिक्षक चंद्रन और एक किशोर छात्र सहित अनेक कार्यकर्ताओं की हत्या माकपा के गुंडों ने की। 1980 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता गंगाधरन और भाजपा के गोपालकृष्णन की हत्या की गई। 1981 में खंड कार्यवाह करिमबिल सतीशन, 1982 में कुट्टनाडु में खंड कार्यवाह विश्वम्भरम् और 1986 में कन्नूर जिले के भाजपा सचिव पन्नयनूर चंद्रन की हत्या की गई। इसी तरह 1984 में कन्नूर के जिला सह कार्यवाह सदानंद मास्टर की घुटनों के नीचे दोनों टांगे काट दी गईं। ऐसी अनेक निर्मम हत्याओं को वामपंथी गुंडों द्वारा अंज़ाम दिया गया है।कन्नूर जिला केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन का गृह जिला है।केरल का कन्नूर लाल आतंक के लिए सबसे अधिक कुख्यात है। ऐसा माना जाता है कि अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने का प्रशिक्षण देने के लिए वामपंथी खेमे में गर्व के साथ ‘कन्नूर मॉडल’ को प्रस्तुत किया जाता है कन्नूर के पुलिस अधीक्षक के मुताबिक, 1 मई, 2016 से 16 सितंबर के बीच केवल कन्नूर जिले में राजनीतिक हिंसा की कुल 301 वारदातें घटित हुईं। इस प्रकार देखा जा सकता है कि केरल में लाल आतंक किस हद तक विकराल रूप ले चुका है।। अब जब प्रदेश में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है, तब इस कन्नूर मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।

      वामपंथी विचार के मूल में तानाशाही और हिंसा है। कम्युनिस्ट पार्टियों ने रूस से लेकर चीन, पूर्वी यूरोपीय देशों, कोरिया और क्यूबा से लेकर भारत के लाल गलियारों में घोर असहिष्णुता का प्रकटीकरण किया है। वामपंथी विचार को थोपने के लिए अन्य विचार के लोगों की राजनीतिक हत्याएं करने में कम्युनिस्ट कुख्यात हैं। भारत में पश्चिम बंगाल इस प्रवृत्ति का गवाह है और अब केरल में यह दिख रही है। केरल में वामपंथी विचारधारा से शिक्षित माकपा के लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,एबीवीपी,भाजपा व् राष्ट्रवादी विचार के संगठनों से जुड़े  कार्यकर्ताओं की जिस क्रूरता से हत्या कर रहे हैं, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है

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