संदेश

भगत सिंह को पत्र

  भगतसिंह   के नाम पत्र                    - अशवनी शर्मा (प्रदेश संगठन मंत्री अभाविप )     सच्चा युवक तो बिना झिझक के मृत्यु का आलिगन करता है ,  चोखी संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है ,  तोप के मुँह पर बैठकर भी मुस्कुराता ही रहता है ,  बेड़ियों की झनकार पर राष्ट्रीय गान गाता है और फाँसी के तख़्ते पर अट्टहासपूर्वक आरूढ़ हो जाता है। फाँसी के दिन युवक का ही वज़न बढ़ता है ,  जेल की चक्की पर युवक ही उद्बोधन-मन्त्र गाता है ,  कालकोठरी के अन्धकार में धँसकर ही वह स्वदेश को अन्धकार के बीच से उबारता है – भगत सिंह प्रिय भगत   आज ही के दिन तुमने सुखदेव और राजगुरु के साथ हसकर फांसी के फंदे को चूम लिया था . तुम्हारी जलाई लौ आज इस वीर प्रसूता भारत भू के हर युवा मन में जल रही है  तुम्हे गये 89 बरस हो रहे है तुमने जवानियो को जीना सिखाया है . युवको के नाम लिखे अपने पत्र में तुम्ही ने युवावस्था के विषय में लिखा है  “ युवावस्था मानव-जीवन का वसन्तकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हज़ारों बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियाँ सहस्र-धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदान्ध मातंग की तरह निरंकुश

"होइए वही जो राम रची राखा"

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होइहि सोइ जो राम रचि राखा - अशवनी शर्मा (प्रदेश संगठन मंत्री , अभाविप गुजरात) जो कुछ श्रीराम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे । श्री रामचरित मानस में गोस्वामी श्री तुलसीदास जी की लिखी इस चोपाई का मतलब यू तो समय समय पर समझ मे आता है पर आज श्री रामजन्मभूमि पर बड़ी अदालत का निर्णय देखकर पूरी तरह से समझ मे आ गया ।9 नवम्बर 2019 भारत के इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन बन गया दशकों या कहे शताब्दियों से चले आरहे श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण पर देश की मुख्य अदालत ने अपना निर्णय सुना दिया तीस वर्ष पूर्व इसी दिन 9 नवम्बर 1989 को बहुचर्चित श्रीराम मंदिर आंदोलन की नींव भी पड़ी फैसले का यह दिन अदालत ने क्यों चुना यह तो पता नही पर शनिवार का यह दिन श्रद्धा पर सविधान की मुहर का दिन बन गया । तिरपाल में बैठे न्याय की आस लगाए श्री रामलला विराजमान को आखिर उनकी जन्मभूमि पर एकाधिकार प्राप्त हुआ ।  नियमित सुनवाई के बाद पूरा देश निर्णय की प्रतीक्षा में था 5 से 17 नवम्बर तक कब निर्णय आये राम जाने और निर्णय क्या आएगा वह भी राम ही जाने बस सालों के इस विवाद पर देश निर्णय चाहता था! अंततः 1

शक्ति एवम साहस का मिशन......मिशन साहसी

शक्ति एवं साहस का.......  मिशन    हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज का अलम  चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला " प्रसिद्ध शायर जिया जालंधरी का लिखा यह  शेर आज अनेक समस्याओ पर राह दिखाता सा प्रतीत होता है अनेको समस्याएं ,विषय ऐसे है जिनपर आवाज की जरूरत है हिम्मत की जरूरत है पर एक प्रश्न सदियों से यक्ष प्रश्न की तरह सैदेव सभी के समक्ष रहता है की करे कौन ? बहुत विषय है किस किस पर बोले। ..... बस समाज की दिशा ठीक करने की आवश्यकता है यह भी को बखूबी मालूम है।  . एक महत्वपूर्ण विषय सभी के सम्मुख हमेशा आता है नारी सुरक्षा ,  सम्मान , स्वाभिमान का बहुत से उदाहरण समाज में है भी जिन्होंने आवाज बुलंद करके स्वयं को सिद्ध किया है ऐसे उदाहरणों से ही आज के सोपान तक  हमारी बहिन , बेटी या माँ पहुंची है समाज में अधिकार और सम्मान भी मिलना प्रारम्भ हुआ है पर विचार आवश्यक है कब तक ऐसे ही उदाहरणों से काम चलता रहेगा।   महात्मा गाँधी के बचपन की एक घटना स्मरण आती है "एक बार बचपन में गाँधी अपने मित्रो के साथ खेलकर घर आये और आकर माँ से पूछा " माँ इस घर में मेरा कितना अधिकार है ? " माँ ने मुस्कुराकर बैठ

ख्वाब

अपने आसुओ की स्याही में डुबोकर कलम दिल के पन्नो पर तुम्हे लिखा करता हूं मैं रोज ख्वाबो में एक खता करता हूं तुम्हे मैं अभी भी मिला करता हूं हँसना-मुस्कुराना,रूठना मनाना छिपकर मिलने आना,रोज नया बहाना एक एक पल को याद आँखे भिगोकर करता हूं दिल के पन्नो पर तुम्हे लिखा जरूर करता हूं मैं रोज ख्वाबो में एक खता करता हूं...…... जिंदगी है तुम्ही से या तुम्ही हो जिंदगी सोच में भूलकर सब,कहि खो जाया करता हूं जब तुम्हारी कमी सी महसूस होती है कभी कभी दिल के इन्ही पन्नो में "अक्स"ढूंढता रह जाया करता हूं में रोज ख्वाबो में एक खता करता हूं तुम्हे मैं अभी भी मिला करता हूं                            -अशवनी कुमार "आज़ाद"                            (17 फरवरी 2018 ,12:54 )
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                                       कविता                             फल की बाट       कर्म कर फल की चिंता मत कर  जुमला पूराना हो गया कर्म करके बात जोते फल की हमे एक जमाना हो गया अब चलती है व्हाट्सअप की सीन और अनसीन की कहानी वो चिट्ठी और तार को भूले  एक जमाना हो गया अब रोज़ हो जाती है डियर से रात में चैटिंग वो बैचेन हो झरोखे में बाट जोना पिया की  अब पूराना हो गया          कर्म करके बाट जोते फल की .... ......  अब चायनीज़ फ़ूड पिज्जा और डेटिंग में मेल जमुना किनारे राधाकृष्ण का प्रेम बीता जमाना होगया कार में ही हो जाती है अब सारी आश्कि वो बाग़ में सिया का राम को देखना और मुस्कुरा जाना अब पुराना हो गया          कर्म करके बाट जोते फल की हमे जमाना हो गया...........  अब आईफोन पर चैटिंग और mts पर लम्बी बाते  चिट्ठी में कलेजा निकाल रखने का हुनर अब पुराना हो गया कोचिंगों और कॉलेजों में ही अब मिलजाते है दिल वो खिड़कियों के चाँद और ..तय होना जोड़िया भगवान के घर पर कहानियों और किस्सो का दौर "अक्स" अब पुराना हो गया   . .कर्म करके बात जोते फल की

केरल में लाल आतंक

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                                       केरल में लाल आतंक                                                                                    -  अश्वनी कुमार "आज़ाद "                                                                                                                                                  कुछ माह पूर्व सहिष्णुता की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन अगर आप  केरल में हिंसा की बात करेंगे तो  इस  पर मानवाधिकारों की दुहाई देने बाले प्रवक्ता लुप्तप्राय हो जायेगे । केरल में लगातार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ,एबीवीपी,भाजपा व् राष्ट्रवादी विचार के संगठनों से जुड़े  कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर  वीभत्स ,अमानवीय तरिके के उनकी हत्या की जा रही है और इस हिंसा को मुख्यमंत्री पी विजयन की माकपा सरकार का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है ।भारत विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र है, जहां सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। एक राज्य में जब गुण्डाराज बढ़ जाता है। निर्दोष लोगों की हत्याओं के साथ ही अन्य प्रकार के अपराध बढ़ जाते हैं, तब सामान्य तौर पर माना जाता है कि राज्य सरकार असफल साबित हो रही

हिंदी

                               हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा :  हिंदी दिवस                                                                                            -  अश्वनी कुमार "आज़ाद "                                                                                                       "हिंदी " नाम ध्यान में आते ही चेहरे पर मुस्कुराहट और मस्तिष्क का ध्यान अनायास ही बचपन में खींचा चला जाता है ,बड़े होकर अहसास होता है की जीवन का बेहतरीन समय स्कूल में पढ़ने के वक्त गुजरता है हम जैसे डपोल और दिमाग ज्यादा खर्च ना करने वालो का प्रिय विषय हिंदी ही होता है 'प्रेमचंद की कहानिया,महादेवीवर्मा की कविताये ,रविंद्र नाथ टैगोर मैथली शरण गुप्त,शुभद्रा कुमारी चौहान ,रामधारी सिंह दिनकर की रचनाये पढ़कर आनंद आता तो भगत सिंह ,चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन पढ़कर तो दो तीन दिन तक क्रन्तिकारी बनकर कॉलोनी में घूमने का सौभाग्य भी मिलता ,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी जैसी अनेक कविता-कहानिया जबान पर आज तक रटे हुए है हमारा मनभावन और आज तक मुस्कुराहट देने का कुछ श्रेय तो